मीर अनीस के मरसिए विश्व साहित्य में उर्दू भाषा की श्रेष्ठता को साबित करते हैं

जौनपुर नामा
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ऊर्दू के बड़े शायर मीर अनीस की 150वीं बरसी पर ‘यादे मीर अनीस’

अनीस आज भी उर्दू में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों मे से एक हैं।

जौनपुर (19 दिसम्बर)- मशहूर शायर मीर बब्बर अली अनीस की 150वीं पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी विद्वतापूर्ण और साहित्यिक सेवाओं को श्रद्धांजलि देने के लिए ‘यादे मीर अनीस’ कार्यक्रम का आयोजन मोहल्ला अजमेरी स्थित मरहूम सैयद अली शब्बर के मकान के इमामबाड़ा में किया गया।
इस कार्यक्रम में मीर अनीस के जीवन,उनकी शायरी और मरसिए पर विशेष चर्चा हुई। उपस्थित विद्वानों ने अनीस की अद्वितीय लेखन शैली और उनके योगदान को अपने शब्दों में व्यक्त किया।

मौलाना सैयद मोहम्मद शाज़ान जैदी ने कहा, "मीर अनीस ने उर्दू के शोक काव्य (मरसिया) को अपनी रचनात्मकता से शिखर तक पहुंचाया। उन्होंने साबित किया कि उर्दू में उत्कृष्ट साहित्य केवल ग़ज़ल तक सीमित नहीं है।" अनीस आज भी उर्दू में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों मे से एक है। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सैय्यद मोहम्मद मासूम ने कहा, "अनीस के मर्सिए युद्धकला और कर्बला की घटनाओं का इतना जीवंत वर्णन करते हैं कि पाठक के मन में घटनाओं की सजीव छवि उभरती है। उनकी लेखन शैली में बिम्बात्मकता और मानवीय भावनाओं का गहरा प्रभाव है।"

मुफ्ती नजमुल हसन ने कहा "अनीस ने अपनी शायरी के माध्यम से जो मुकाम हासिल किया, वह बहुत कम शायरों को नसीब होता है। उन्होंने दरबारी शायर बनने से सख्ती से इंकार किया जो उनकी आत्मनिर्भरता और साहित्यिक स्वतंत्रता को दर्शाता है।"कार्यक्रम के दौरान एहतेशाम रूधौलवी ने अनीस का लिखा हुआ एक मरसिया पढ़ा और कहा, "अगर अनीस की विरासत को उर्दू से हटा दिया जाए, तो इसकी साहित्यिक गहराई आधी रह जाएगी। उनके मरसिए विश्व साहित्य में उर्दू भाषा की श्रेष्ठता को साबित करते हैं।" मुफ्ती दानिश काज़मी ने बताया कि भारत सरकार ने अनीस के सम्मान मे 1975 मे डाक टिकट जारी किया था।अन्त मे दुआ कराई गई। 

संचालन सैय्यद मोहम्मद मुस्तफा ने किया। इस अवसर पर कैफ़ी मोहम्मदाबादी,हसन मुस्तफा कायम,वजीह आब्दी,सैयद मोहम्मद अब्बास,सैयद आमिर मेहंदी,आरिफ हुसैनी,अकबर अब्बास, मोहसिन रज़ा,अब्बास महमूद,आरिज़ काज़मी सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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