शीराज़ ए हिन्द का ऐतेहासिक जुलूस यौमुन्नबी अपने कल और आज के आईने में!

जौनपुर नामा
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अजवद क़ासमी

जौनपुर:- शीराज़ ए हिन्द जौनपुर का ऐतिहासिक जुलूस यौमुन्नबी स.अ.व व मदह ए सहाबा रज़ि जौनपुर के मुसलमानों की अज़मत और उनकी आन,बान,शान है। हज़रत मोहम्मद स.अ.व से मुसलमानों की बे इंतिहा मोहब्बत और सहाबा से हुस्न ए अक़ीदत का इज़हार है। सीरत ए रसूल व उसवा ए सहाबा से मुसलमानों को रोशनास कराने और उनकी दीनी मालूमात में इज़ाफ़ा का बाइस और ज़रिया भी है। इस ऐतिहासिक जुलूस को क़ायम करने वाले बुज़ुर्गों में ये जज़्बा रहा होगा कि वोह अपनी क़ौम को ग़ैर इस्लामी रसूम व बिदआत से दूर रखें और बुजुर्गों को इस नेक मक़सद में काफ़ी हद तक कामयाबी भी मिली उन्होंने इस जुलूस को दीन की तब्लीग का ज़रिया भी बनाया आगे चलकर ये जुलूस सुन्नी मुसलमानों की ख़ास पहचान बन गया और इस जुलूस की बुनियाद बुज़ुर्गों के लहू पर खड़ी है यहाँ तक कि जिसकी वजह से हमेशा क़ौम व मिल्लत इन बुज़ुर्गो के एहसान की क़र्ज़दार रहेगी।

1927 के पहले से गवर्मेन्ट हाई स्कूल जौनपुर के छात्र 12 रबीउल अव्वल को किदवई पार्क टिकली टोला में एक महफ़िल ए मिलाद किया करते थे और एक जुलूस चहारसू से उठाते थे और किदवई पार्क पर ख़त्म करदेते थे जिसमें अमजदुल्लाह अंसारी और असद खां पेश पेश थे। 1914 में पहली जंग ए अज़ीम शुरू हो चुकी थी ख़िलाफ़त तहरीक अपने उरूज पर थी ये कहा जा सकता है कि इन छात्रों को जुलूस निकालने की तहरीक ख़िलाफ़त तहरीक से मिली होगी और छात्र इस तहरीक से ज़रूर प्रभावित हुए होंगे महफ़िल ए मिलाद का आयोजन तो वो पहले से ही करते चले आ रहे थे बाद में उन लोगों ने किदवई पार्क से चहारसू तक जुलूस भी निकाला। 1927 में अमजदुल्लाह अंसारी के इसरार पर मौलवी अली हसन किदवई ने पहली बार इस जुलूस को देखा तो उनके ज़हन में ये बात घर कर गयी कि उस जुलूस का बहुत ज़्यादा फायदा है और इसे तबलीग़ का माध्यम भी बनाया जा सकता है उसके बाद ही से मौलाना ने इस जुलूस को तरबियत देना शुरू करदिया। 

 1928 में मौलाना किदवई ने 12 रबीउल के जुलूस का नाम जुलूस यौमुन्नबी स.अ.व तजवीज़ किया और इसे शाही ईदगाह से निकाला और शाही अटाला मस्जिद पर समाप्त किया और जुलूस की समाप्ति के बाद जलसा ए सीरतुन्नबी स.अ.व का आयोजन किया जुलूस में पहले सिर्फ़ नात पढ़ी जाती थी मौलाना ने इसमें मदह ए सहाबा का इज़ाफ़ा किया। जिसमें सबसे पहले नअत व मनकबत,मदह ए सहाबा अल्लामा हाफ़िज़ मोइनुद्दीन तरीक़ की लिखी हुई शेख़ सुलैमान अंसारी और शेख़ मोहम्मद ने पढ़ी थी। आपको ये भी बताते चलें कि जुलूस यौमुन्नबी की गोलडन जुबली सन् 1976 में मनाई गई थी जिसका उद्घाटन कांग्रेसी मंत्री श्री लक्ष्मी शंकर यादव के हाथों हुआ था उस समय मरकज़ी सीरत कमेटी के अध्यक्ष मुनीर अहमद खां रेडियो इंजीनियर थे। उस समय शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया था और हैंड बिल हवाई जहाज़ के ज़रिए जौनपुर व अतराफ़ में गिराई गयी थी आज भी वो लम्हा लोगों के ज़हनों में महफूज़ है। उन्होंने जुलूस में कुछ नया पन लाने की कोशिश की जिसके बाद टिकली टोला चैराहे पर एक क़ौमी यकजहती के जलसे का आग़ाज़ किया जिसमें मंत्री से लेकर ज़िला प्रशासन,राजनीतिक लोग,हिन्दू मुसलमान,समेत उलमा ए किराम इस जलसे में शिरकत करते थे। बक़ौल अज़ीज़ रब्बानी अज़ीज़ "सरकार दो आलम स.अ.व की निस्बत से किसी अज़ीमुश्शान जुलूस की शुरुआत जौनपुर से हुई और दूसरे जगह के लोगों ने इसकी पैरवी की जिन बुज़ुर्गो ने इस जुलूस को उरूज बख़्शा उनमें ज़्यादातर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो पैगम्बर ए इस्लाम की तालीमात की तबलीग़ के साथ साथ अवाम में जज़्बा ए आज़ादी को बेदार रखना भी अपना फ़र्ज़ समझते थे।"

मौलवी अली हसन किदवई की वफ़ात के बाद जुलूस यौमुन्नबी की क़यादत मौलाना मोहम्मद क़ायम अब्दुल क़य्यूम फरंगी महल्ली,मौलवी सैय्यद हामिद हसन,मौलाना मोहम्मद दाऊद क़ासमी,निज़ामुद्दीन सिद्दीक़ी,मौलाना अली आला फ़ारूक़ी,अब्दुल हमीद क़ौम,हाफ़िज़ मोहम्मद ज़करिया,शैख़ हैदर हुसैन,हाजी ज़फ़र हमीद खान, महमुदुल हसन टिम्बर मर्चेंट आदि ने मौलान किदवई के नक़्श ए क़दम पर चलकर अंजाम दिया मुनीर अहमद खां के दौर में मरकज़ी सीरत कमेटी क़ायम हुई। पहले जुलूस का आग़ाज़ शहीद अब्दुल करीम की क़ब्र पर फ़ातिहा पढ़ने के बाद और जब जुलूस जहाँगीरा बाद पहुंचता तो मौलवी अली हसन किदवई की क़ब्र पर लोग फ़ातिहा ख़्वानी के लिये हाज़िर होते और बड़ी अक़ीदत के साथ फ़ातिहा पढ़ते थे ये क़ब्र मौलाना के मकान में थी जिसको बाद में उनके साहबज़ादे ने त्रिलोकी नाथ मिश्रा वकील के हाथों बेच दिया और फिर वो पाकिस्तान चले गए आहिस्ता आहिस्ता फ़ातिहा ख़्वानी का सिलसिला भी ख़त्म हो गया।

जुलूस यौमुन्नबी व मदह ए सहाबा को सौ साल होने वाले हैं मगर आज भी जुलूस अपनी उसी शान व शौकत के साथ बारह रबीउल अव्वल को बाद नमाज़ ए असर शाही ईदगाह से उठकर शाही अटाला मस्जिद पर पहुंचकर सम्पन्न हो जाता है जिसकी क़यादत मरकज़ी सीरत कमेटी करती है इस अवसर पर पूरे नगर को दुल्हन की तरह सजावट कमेटियों द्वारा सजाया जाता है और फ़न ए सिपहगरी के अखाड़े अपने करतब को दिखाते हैं तो वहीँ अंजुमनें नात व मनकबत के अशआर से गलियों चौराहों को मुअत्तर व मुनव्वर करती हैं जगह जगह कमेटियों द्वारा अंजुमनों व अखाड़ों की दाद व तहसीन और इनआमात के ज़रिए से हौसला अफ़ज़ाई की जाती है। किदवई पार्क कोतवाली चौराहा पर मरकज़ी सीरत कमेटी द्वारा क़ौमी यकजहती के उनवान से एक जलसे का आयोजन किया जाता है जिसमें हिन्दू मुस्लिम समेत ज़िला प्रशासन की शिरकत होती है उसके बाद जुलूस पूरी रात चलता रहता है फ़ज्र की नमाज़ से पहले दुआ कराकर जुलूस को मुकम्मल किया जाता है और फिर उसी दिन जलसा ए सीरतुन्नबी का आयोजन किया जाता है।

मगर अफ़सोस जिस मक़सद के लिये बुज़ुर्गो ने इस जुलूस की बुनियाद रखी थी और इसको परवान चढ़ाने में जेल तक भी गए थे गैरों के शब व शतम को भी सुन्ना पड़ा था मगर इस जुलूस को कामयाब बनाने में कभी पीछे नहीं हटे यहां तक कि अपने जान व माल तक को क़ुरबान करदिया क्योंकि उनकी नियत और इरादा सिर्फ़ और सिर्फ़ नबी और उनके असहाब से मोहब्ब्त की थी नाम व नमूद उनका मक़सद नहीं था मगर आज इस जुलूस में खुलूस कम कहीं न कहीं नाम व नमूद शोहरत की तलब देखने को मिलती है फिर भी ख़ुशी की बात ये है कि आजतक जौनपुर के सुन्नी मुसलमान इस ऐतहासिक जलसा व जुलूस को पाबंदी के साथ निकाल रहे हैं और जिसके ज़रिये से समाज में एकता और भाईचारे के संदेश को आम कर रहे हैं। फ़िर भी हम अहद करें कि जिस ख़ुलूस व नियत और मक़सद के साथ हमारे बड़ों ने इस जुलूस की स्थापना की थी हम भी उन्हीं के नक़्श ए क़दम पर चलकर उनकी रूहों को सकून पहुंचाने का काम करेंगे और किसी ग़ैर को हंसने का मौका नहीं देंगे।


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