जौनपुर: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ रेहान अख़्तर क़ासमी ने पवित्र माह रमज़ान को लेकर उसके सवाब और अहमियत पर प्रकाश डाला है उन्होंने बताया कि रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है जो एक दिन के बाद शुरू होने वाला है इस पूरे महीने में मुसलमानों के लिए रोज़ा रखना अनिवार्य है। इस महीने में इबादत के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में उपवास (रोजा) पवित्र कुरआन का पाठ,आखरी दस दिनों की विषम रातों में जागना,क्षमा की प्रार्थना करना,रोजेदार को इफ्तार कराना और गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना शामिल है। रोजा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। जिसे अरबी में 'सॉम' कहते हैं जिसका अर्थ है रुक जाना जैसे बात करने से चलने से रुक जाना ,खाने पीने से रुक जाना,कमूसूल एल मुहीथ मे इसका यही अर्थ बयान किया गया है,रोजा भी सुबह सादिक से लेकर गुरुब आफताब (सूर्य छुपने) (13 से 14 घंटे) तक खाने पीने और पत्नी से जीमा करने से रुकने का नाम है। उपवास पूजा का एक रूप है जो दिखावा और पाखंड से पूरी तरह मुक्त है। यह पूरी तरह से अल्लाह और उसके बन्दे के बीच का मामला है।इसलिए रोज़े के सवाब के बारे में कहा जाता है कि रोज़ा रखना अल्लाह के लिए है और वही इसका बदला देगा।
रमजान का महीना बरकत वाला महीना है और इस महीने की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी पवित्र महीने में पवित्र कुरआन नाजिल हुआ जब रमज़ान का चाँद दिखाई देता था तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते थे कि यह चाँद शुभ और बरकत वाला है,मैं उस पर ईमान रखता हूँ जिसने पैदा किया। हदीस में कहा गया है कि रमजान अल्लाह तआला का महीना है, जिससे पता चलता है कि इस मुबारक महीने से खुदा का खास रिश्ता है जिसकी वजह से यह मुबारक महीना अन्य महीनों से भिन्न है।
इस मुबारक महीने को तीन हिस्सों मे बांटा गया है जिनको अरबी भाषा में अशरा कहा जाता ही (एक अशरे में दस दिन होते हैं) रमजान के महीने में 3 अशरे होते हैं। पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है। रमजान के महीने को लेकर एक किताब में पैगंबर मोहम्मद ने कहा है रमजान की शुरुआत में रहमत है,बीच में मगफिरत यानी माफी है और इसके अंत में जहन्नुम की आग से बचाव है। रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। रमजान के बीच यानी दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से पवित्र हो सकते हैं। वहीं, रमजान के आखिरी यानी तीसरे अशरे में जहन्नुम की आग से खुद को बचा सकते हैं।
इस महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते है और शैतान को जंजीरों में बांध दिया जाता है। हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि पैगंबर साहब ने कहा: जब रमजान का महीना आता है तो स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं नरक के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को जंजीरों में डाल दिया जाता है।
रमजान मुबारक वह बरकत वाला महीना है जो इंसान को अल्लाह तआला का प्यारा बना देता है, जिसके मुंह की खुश्बू अल्लाह तआला को मुश्क की खुश्बू से ज्यादा प्यारी है। हजरत अबू हुरैरा से रिवायत है कि जो व्यक्ति ईमान की हालत में सवाब की निय्यत से रमजान में रोज़ा रखता है उसके पिछले पाप क्षमा कर दिए जाते हैं। रमज़ान के हर एक लम्हे में इतनी बरकतें और रहमते हैं कि बाक़ी ग्यारह महीने भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते।
रमज़ान को कुरआन का महीना भी कहा जाता है क्यों की इसी महीने मे कुरआन नाजिल किया गया है कुरआन मे हे "रमज़ान का वह महीना जिसमें कुरआन नाजिल किया गया" जिस से पता चलता है की यह एक सच्चाई है कि पवित्र कुरआन रमजान में अवतरित हुआ था। रमजान का कुरआन से गहरा संबंध है। हमें रमजान की सराहना करते हुए उपवास के साथ-साथ पवित्र कुरआन को पढ़ने में व्यस्त होना चाहिए। रमजान और कुरआन आपस में इस तरह से जुड़े हुए हैं कि ये दोनों उन लोगों के पक्ष में कयामत के दिन शफाअत करेंगे जो रोजा रखते हैं और इसे पढ़ते हैं। हदीस में है कि रोजा और कुरआन कयामत के दिन सिफारिश करेंगे रोज़ा कहेगा: ऐ मेरे रब! मैंने इस व्यक्ति को दिन में खाने-पीने से रोका था तो उसके पक्ष में मेरी सिफारिश स्वीकार करो! पवित्र कुरान कहेगा: हे मेरे भगवान! मैंने उसे रात को सोने से रोका अतः इसके पक्ष में मेरा सुझाव स्वीकार करें ! फिर दोनों की सिफारिशें मान ली जाएंगी।
मुसलमानों को अपना अधिकांश समय रमजान के पवित्र महीने में पवित्र कुरआन का ध्यान करने और उसका पाठ करने में व्यतीत करना चाहिए। यह कार्य जहां उन्हें रमज़ान के पवित्र महीने में बेकार और व्यर्थ की बातों से सुरक्षित रखेगा वहीं यह कार्य उनके भविष्य में भी सुधार करेगा और उन्हें अल्लाह से बड़ा इनाम मिलेगा पैगंबर मुहम्मद साहब का यह भी मामूल था कि वह रमजान के दौरान पवित्र कुरआन को जिब्राइल के साथ पढ़ते थे। इस महीने में नमाज में कुरआन का पढ़ना और सुनना पुण्य का कार्य माना जाता है जिसे तरावीह भी कहा जाता हैं। जहा रोजा अल्लाह को पसंद हैं वहीं रोजा रखने के बहुत सारे फायदे भी है। जैसे रोज़ा रखने का मकसद परहेजगारी करना है,हदीसों में आया है, अल्लाह फरमाता है कि रोज़ा तुम पर इस कदर फर्ज है जैसे तुमसे पहले आई उम्मतों पर था। जब कोई शख्स रोजा रखता है तो उसको यह फिक्र होती है कि मुझे यह गलत काम नहीं करना है नहीं तो अल्लाह नाराज हो जाएगा तो इसे ही हम परहेजगारी कहते हैं जो हमें जिंदगी में काफी फायदा पहुंचाती है। रोजे से ईमान ताजा होता है रमजान के महीने में हमारे चारों तरफ इबादत का माहौल होता है हर कोई इबादत कर रहा होता है और अपने रब को राज़ी करने की कोशिश कर रहा होता है। ऐसे में उस इंसान का भी ईमान ताजा हो जाता है जो पूरे साल इबादत नहीं करता लेकिन औरों को देखकर रमजान की रहमतों को देखकर उसके दिलों में भी ईमान जागता है और वह भी इबादत में लग जाता है। रोजा रखने से हमारा जिस्म खुद को साफ करता है और पहले जैसा मजबूत कर देता है जिससे हम सेहतमंद हो जाते हैं और बीमारियां हमसे दूर रहती हैं। हम आए दिन बहुत सी खताएं करते हैं जिससे हमें दुनिया में तो दिक्कत का सामना करना ही पड़ता है साथ ही आखरत के लिए भी वह परेशानी का सबब बन जाती है, ऐसे में हमें अपने खताओ की माफी हमेशा मांगते रहना चाहिए।
हदीस शरीफ में आया है रमज़ान के महीने में अल्लाह ताआला मुसलमानों की तरफ मुतवज्ज़ह होता है और खताओं को माफ फरमा देता है। इस महीने में दान देने का स्वाब भी बढ़ कर दिया जाता हे जो सत्तर दर्जे तक बढ़ा दिया जाता है और नफल का स्वाब फर्ज के बराबर कर दिया जता है। ये महीना मुहब्बत और एकता का पाठ पढ़ाता है रिसर्च से साबित हुआ है कि रोज़ा रखने से समाज में अनुशासन पैदा होता है और पूरा समाज एक निश्चित अनुशासन में बंध जाता है, सभी लोग एक ही समय तरावीह पढ़ते हैं एक ही समय पर खाना शुरू करते हैं। जिस समाज में यह अनुशासन होता है यह इतना असरदार है कि देखने वाला इसे देखकर चौंक जाता है।
रमजान के महीने में साफ-सफाई बेहतर हो जाती है। सड़क पर सामान फेंकने वाले लोग के अंदर तब्दीली नजर आती है। नजरिया बदल जाता है और लोग एक दूसरे की परवाह करने लगते हैं। रमजान के दौरान लोग एक दूसरे के बारे में जितना आम दिनों में सोचते उस से कहीं ज्यादा सोचते हैं मसलन दूसरों की मदद करना और किसी भी समाज में यह एक सकारात्मक बात मानी जाती है कि जो लोग उस समाज में बेहतर स्थिति में हैं, उन्हें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो जरूरत मंद है। एक निम्न स्थिति और हम रमजान में इस स्थिति को अपने चरम पर देखते हैं, इस प्रकार रमजान में बीमारियों की दर भी कम हो जाती है। जो लोग नियमित रूप से ड्रग्स लेते हैं जैसे कि जो लोग सिगरेट पीते हैं पान का खाते हैं तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं या अन्य ड्रग्स के आदी हैं उनके ड्रग के इस्तेमाल में कमी आती है। चिकित्सा अनुसंधान से पता चला है कि समुदाय भर में संक्रामक रोग कम हो गए हैं, हृदय रोग कम हो गए हैं दिल के दौरे के कारण अस्पताल में भर्ती होने की दर कम हो गई है, और स्ट्रोक कम हो गए हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है कि रमज़ान के महीने के दौरान मुस्लिम समाजों में अपराध दर में कमी आती है क्योंकि पूरे समाज में सकारात्मक परिवर्तन होता है जिसके परिणामस्वरूप कम अपराध होते हैं।